Saturday, January 23, 2010

भाभी का प्यार

मैं एक साल से अपने भैया और भाभी के साथ रह रहा हूँ. भैया एक बरी कंपनी में कम करते हैं. मेरी भाभी कंचन बहुत ही सुंदर है. भैया की शादी को दो साल हो चुके हैं. भाभी की उम्र २४ साल है. मैं भाभी की बहुत इज्ज़त करता हूँ और वोह भी मझे बहुत चाहती है. हम दोनों में खूब दोस्ती है और हंसी मजाक चलता रहता है. भाभी मुझे प्यार से रामू बुलाती है. भाभी पढ़ाई में भी मेरी सहायता करती है. वोह मुझे मथस पढ़ाती है.

एक दिन की बात है. भाभी मुझे पढ़ा रही थी और भैया अपने कमरे में लेते हुए थे. रात के दस बजे थे. इतने में भैया की आवाज़ आई " कंचन, और कितनी देर है जल्दी आओ न". भाभी आधे में से उठाते हुए बोली " रामू बाकि कल करेंगे तुम्हारे भैया आज कुच्छ जादा ही उतावले हो रहे हैं." यह कह कर वोह जल्दी से अपने कमरे में चली गयी. मुझे भाभी की बात कुच्छ ठीक से समझ नहीं आई. काफी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग की tube लाइट जली और मेरी समझ में आ गया की भैया को किस बात की उतावली हो रही थी. मेरे दिल की धकन तेज़ हो गयी. आज तक मेरे दिल में भाभी को ले कर बुरे विचार नहीं ए थे, लेकिन भाभी के मुंह से उतावले वाली बात सुन कर कुच्छ अजीब सा लग रहा था. मुझे लगा की भाभी के मुंह से अनायास ही यह निकल गया होगा. जैसे ही भाभी के कमरे की लाइट बंद हुई मेरे दिल की धकन और तेज़ हो गयी. मैंने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बंद कर दी और चुपके से भाभी के अरे के दरवाज़े से कान लगा कर खारा हो गया. अंडर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुच्छ कुच्छ ही साफ़ सुने दे रहा था.

" क्यों जी आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?"

" मेरी जान कितने दिन से तुमने दी नहीं. इतना जुल्म तो न किया करो."

"चलिए भी,मैंने कब रोका है, आप ही को फुरसत नहीं मिलती. रामू का कल एक्साम है उसे पढ़ाना ज़रूरी था."

" अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी चुत का उदघाटन करूँ."

" है राम! कैसी बातें बोलते हो.शर्म नहीं आती"

" शर्म की क्या बात है. अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीबी को चोदने में शर्म कैसी"

" बारे ख़राब हो. अह..आया..अह है राम….औइ मा……अआः…… धीरे करो रजा अभी तो साडी रात बाकी है"

मैं दरवाज़े पर और न खारा रह सका. पसीने से मेरे कपरे भीग चुके थे. मेरा लंड underwear फार कर बहार आने को तयार था. मैं जल्दी से अपने बिसटर पर लेट गया पर सारी रत भाभी के बारे में सोचता रहा. एक पल भी न सो सका.ज़िन्दगी में पहली बार भाभी के बारे में सोच कर मेरा लंड खरा हुआ था. सुबह भैया ऑफिस चले गए. मैं भाभी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था जबकि भाभी मेरी कल रात की करतूत से बेखबर थी. भाभी कितचेन में कम कर रही थी. मैं भी कितचेन में खडा हो गया. ज़िन्दगी में पहली बार मैंने भाभी के जिस्म को गौर से देखा. गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन,लुम्बे घने काले बाल जो भाभी के घुटने तक लटकते थे, बरी बरी आकहें, गोल गोल आम के आकार की चूचियन जिनका साइज़ ३८ से कम न होगा, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौर, भरी नितम्ब . एक बार फिर मेरे दिल की धकन बढ़ अई . इस बार मैंने हिम्मत कर के भाभी से पूछ ही लिया.

" भाभी, मेरा आज एक्साम है और आप को तो कोई चिंता ही नहीं थी. बिना
पढ़ाहे ही आप कल रात सोने चल दी"

" कैसी बातें करता है रामू, तेरी चिंता नहीं करुँगी तो किसकी करुँगी?"

" झूट , मेरी चिंता थी तो गयी क्यों?"

" तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था."

" भाभी, भैया ने क्यों शोर मचा रखा था" मैंने बारे ही भोले स्वर में पुछा. भाभी शायद मेरी चालाकी समझ गयी और तिरछी नज़र से देखते हुए बोली,...

" धत बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है. मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए. बोल है कोई लड़की पसंद?"

" भाभी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अछि लगती हो.

" चल नालायक भाग एहन से और जा कर अपना एक्साम दे.".................
इसकी मादक खुशबू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है."

" अरे पगला है? यह तो मैंने कल से पहनी हुई थी. धोने तो दे."

" नहीं भाभी धोने से तो इसमें से आपकी महक निकल जाएगी. मैं इसे
ऐसे ही रखना चाहता हूँ."

" धत पागल! अच्छा तू कबसे घर में है?" भाभी शायद जानना चाहती थी की कहीं मैंने उसे नंगी तो नहीं देख लिया. मैंने कहा" भाभी मैं जनता हूँ की आप क्या जानना चाहती हैं. मेरी गलती क्याहै, जब मैं घर आया तो आप बिलकुल नंगी शीशे के सामने ख़री थी. लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका. सच कहूँ भाभी आप
बिलकुल नंगी हो कर बहुत ही सुंदर लग रही थी. पतली कमर, भरी नितम्ब और गदरायी हुई जांघें देख कर तो बारे से बारे ब्रहमचारी की नियत भी खराब हो जाये."

भाभी शर्म से लाल हो उठी.

" है राम तुझे शर्म नहीं आती. कहीं तेरी भी नियत तो नहीं ख़राब
हो गयी है?"

" आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?"

"हे भगवन, आज तेरे भैया से तेरी शादी की बात करनी ही परेगी" इससे पहले मैं कुच्छ और कहता वोह अपने कमरे में भाग गयी.

भैया को कल ६ महीने के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना था. आज उनका आखरी दिन था. आज रात को तो भाभी की चुदाई निश्चित ही थी. रात को भाभी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गयी. उसके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गयी. मैं समझ गया की चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं. मैं एक
बार फिर चुपके से भाभी के दरवाज़े पर कान लगा कर खरा हो गया. अंडर से मुझे भैया भाभी की बातें साफ़ सुने दे रही थी. भैया कहा रहे थे,

"कंचन, ६ महीने का समय तो बहुत होता है. इतने दिन मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूँगा. ज़रा सोचो ६ महीने तक तुम्हें नहीं चोद सकूँगा."

" आप तो ऐसे बोल रहें हैं जैसे यहाँ रोज़ …."

" क्या मेरी जान बोलो न. शर्माती क्यों हो? कल तो मैं जा रहा हूँ. आज रात तो खुल के बात करो. तुम्हारे मुंह से ऐसी बातें सुन कर दिल खुश हो जाता है."

" मैं तो आपको खुश देखने के लिए कुच्छ भी कर सकती हूँ. मैं तो ये कह रही थी, यहाँ आप कोन सा मुझे रोज़ चोदते हैं." भाभी के मुंह से चुदाई की बात सुन मेरा लंड फनफनाने लगा.

" कंचन यहाँ तो बहुत काम रहता है इसलिए थक जाता था. वापस आने के बाद मेरा प्रोमोतिओं हो जायेगा और उतना काम नहीं होगा. फिर तो मैं तुम्हें रोज़ चोदुंगा. बोलो मेरी जान रोज़ चुद्वओगी न."

" मेरे रजा, सच बातों मेरा दिल तो रोज़ ही चुदवाने को करता है पर आपको तो चोदने की फुरसत ही नहीं. कोई अपनी जवान बीवी को महीने में सिर्फ दो तीन बार ही चोदा जाता है?"

" तो तुम मुझसे कह नहीं सकती थी?



" कैसी बातें करतें हैं? औरत ज़ात हूँ. चोदने में पहल करना तो मर्द का काम होता है. मैं आपसे क्या कहती? चोदो मुझे? रोज़ रात को आपके लंड के लिए तरसती रहती हूँ."

" कंचन तुम जानती हो मैं ऐसा नहीं हूँ. याद है अपना होनीमून, जब दस दिन तक लगातार दिन में तीन चार बार तुम्हें चोदता था?
बल्कि उस वक़्त तो तुम मेरे लुंड से घबरा कर भागती फिरती थी."

" याद है मेरे रजा. लेकिन उस वक़्त तक सुहाग रात की चुदाई के कारन मेरी चूत का दर्द दूर नहींहुआ था. आपने भी तो सुहाग रात को मुझे बरी बेरहमी से चोदा था."

" उस वक़्त मैं अनारी था मेरी जान"

" अनारी की क्या बात थी? किसी लड़की की कुंवारी चूत को इतने मोटे, लुम्बे लुण्ड से इतनी जोर से चोदा जाता है क्या? कितना खून निकाल दिया था आपने मेरी chhot में से, पूरी चादर ख़राब हो गयी थी. अब जब मेरी चूत आपके लुंड को झेलने के लायक हो गयी है तो आपने चोदना ही कम कर दिया है."

" अब चोदने भी दोगी या सारी रात बातों में ही गुज़ार दोगी." यह
कह कर भैया भाभी के कपरे उतरने लगे.

"कंचन, मैं तुम्हारी ये कच्छी साथ ले जाऊँगा."

" क्यों? आप इसका क्या करेंगे?"

" जब भी चोदने का दिल करेगा तो इसे अपने लुण्ड से लगा लूँगा." कच्छी उतर कर शायद भैया ने लुण्ड भाभी की चूत में पेल दिया, क्योंकि भाभी के मुंह से आवाजें आने लगीं

" आः….ऊओह…अघ..अह..अह..अह..अह"

" कंचन आज तो सारी रात लूँगा तुम्हारी"

" लीजिये न आआह्ह….कोन…. आह रोक रहा है? आपकी चिसे है. जी भर के चोदिये….उई मा…..."

"ठोरी टाँगें और चौरी करो. हाँ अब ठीक है. अह पूरा लुंड ज़र तक घुस गया है."

"आआआ…हह, ऊऊह."

" कंचन मज़ा आ रहा है मेरी जान?"

" हूँ. आआआ..ह."

" कंचन."

"जी."

" अब छे महीने तक इस खूबसूरत चूत की प्यास कैसे बुझोगी?"

" आपके इस मोटे लुंड के सपने ले कर ही रातें गुज़रुंगी."

"मेरी जान तुम्हें चुदवाने में सुच मच बहुत मज़ा आता है?"

" हाँ मेरे रजा बहुत मज़ा आता है क्योंकि आपका ये मोटा लुम्बा लुंड मेरी चूत को तृप्त कर देता है."

"कंचन मैं वादा करता हूँ, वापस आ कर तुम्हारी इस तिघ्त चूत को चोद चोद कर फार डालूँगा."

"फ़ार डालिए न,आया…ह मैं भी तो येही चाहती हूँ ."

" सुच ! अगर फट गयी तो फिर क्या चुद्वओगी?"

"हटिये भी आप तो ! आपको सुच मुच ये इतनी अछी लगती है?"

" तुम्हारी कसम मेरी जान. इतनी फूली हुई चूत को चोद कर तो मैं धन्य हो गया हूँ. और फिर इसकी मालकिन चुद्वाती भी तो कितने प्यार से है"


" जब चोदने वाले का लुंड इतना मोटा तगर हो तो चुदवाने वाली तो प्यार से चुदवाएगी ही. मैं तो आपके लुंड के लिए आया…ह.. ऊओह बहुत तर्पुंगी. आखिर मेरी प्यास तो ….आआ…. येही बुझाता है."........
भैया ने सारी रात जम कर भाभी की चुदाई की. सवेरे भाभी की ऑंखें सारी रात न सोने के कारण लाल थी. भैया सुबह ६ महीने के लिए मुंबई चले गए. मैं बहुत खुश था. मुझे पूरा विशवास था की इन ६ महीनों में तो भाभी को अवश्य चोद पाउँगा.

हालाँकि अब भाभी मुझसे खुल कर बातें करती थी लेकिन फिर भी मेरी भाभी के साथ कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं हो प् रही थी. मैं मोके की तलाश में था. भैया को जा कर एक महीना बीत चूका था. जो औरत रोज़ चुदवाने को तरसती हो उसके लिए एक महीना बिना चुदाई गुज़ारना मुश्किल था. भाभी को विडियो पर पिक्चर देखने का बहुत शोक
था. एक दिन मैं इंग्लिश की बहुत गन्दी सी पिक्चर ले आया और ऐसी जगह रख दी जहाँ भाभी को नज़र आ जाये. उस पिक्चर में, ७ फूट लुम्बा, तगर काला आदमी एक १६ साल की गोरी लड़की को कई मुद्राओं में चोदता है और उसकी गांड भी मारता है. जब तक मैं कॉलेज से वापस आया तुब तक भाभी वो पिक्चर देख चुकी थी. मेरे आते ही बोली

" रामू ये तू कैसी गन्दी गन्दी पिक्चर देखता है?"

" अरे भाभी आपने वो पिक्चर देख ली? वो आपके देखने की नहीं थी."

" तू उल्टा बोल रहा है. वो मेरे ही देखने की थी. शादीशुदा लोगों को तो ऐसी पिक्चर देखनी चाहिए. है राम ! क्या क्या कर रहा था वो लुम्बा तगरा कालू उस छोटी सी लड़की के साथ. बाप रे !"

" क्यों भाभी भैया आपके साथ ये सुब नहीं करते हैं?"

" तुझे क्या मतलब? और तुझे शादी से पहले ऐसी पिक्चर नहीं देखनी चाहिए."

" लेकिन भाभी अगर शादी से पहले नहीं देखूंगा तो अनारी रह जाऊंगा. पता कैसे लगेगा की शादी के बाद क्या किया जाता है."

" तेरी बात तो सही है. बिलकुल अनारी होना भी ठीक नहीं वर्ना सुहागरात को लड़की को बहुत तकलीफ होती है. तेरे भैया तो बिलकुल अनारी थे."

" भाभी, भैया अनारी थे क्योंकि उन्हें बताने वाला कोई नहीं था. मुझे तो आप समझा सकती हैं लेकिन आपके रहते हुए भी मैं अनारी हूँ. तभी तो ऐसी फिल्म देखनी परती है और उसके बाद भी बहुत सी
बातें समझ नहीं आतीं. आपको मेरी फिकर क्यों होने लगी?"

" रामू, मैं जितनी तेरी फिकर करती हूँ उतनी शायद ही कोई करता हो. आगे से तुझे शिकायत का मोका नहीं दूंगी. तुझे कुछ भी पूछाना हो, बे झिझक पूछ लिया कर. मैं बुरा नहीं मानूंगी. चल अब खाना
खा ले."

" तुम कितनी अछि हो भाभी." मैंने खुश हो कर कहा. अब तो भाभी ने खुली छूट दे दी थी. मैं किसी तरह की भी बात भाभी से कर सकता था. लेकिन कुछ कर पाने की अब भी हिम्मत नहीं थी. मैं भाभी के दिल में अपने लिए चुदाई की भावना जाग्रत करना चाहता था. भैया को गए अब करीब दो महीने हो चले थे. भाभी के
चेहरे पर लुड की प्यास साफ़ ज़ाहिर होती थी.


एक बार ऐतवार को मैं घर पर था. भाभी कपरे धो रही थी. मुझे पता था की भाभी छत पर कपरे सुखाने जाएगी. मैंने सोचा क्यों न आज फिर भाभी को अपने लुड के दर्शन करे जाएं. पिचले दर्शन ३ महीने पहले हुए थे. मैं छत पर कुर्सी दाल कर उसी प्रकार लुंगी घुटनों तक उठा कर बैठ गया. जैसे ही भाभी के छत पर आने की आहात सुने दी, मैंने अपनी टाँगें फैला दी और अख़बार चहरे के सामने कर लिया.

अख़बार के छेद में से मैंने देखा की छत पर आते ही भाभी की नज़र मेरे मोटे, लूम्बे सांप के माफिक लटकते हुए लुंड पे गयी. भाभी की सांस तो गले में ही अटक गयी. उनको तो जैसे सांप सूंघ गया. एक मिनट तो वो अपनी जगह से हिल नहीं सकी, फिर जल्दी कपरे सूखने दाल कर नीचे चल दी.

" भाभी कहाँ जा रही हो, आओ थोरी देर बैठो." मैंने कुर्सी से
उठाते हुए कहा. भाभी बोली

" अच्छा आती हूँ. तुम बैठो मैं तो नीचे चटाई दाल कर बैठ जौंगी." अब तो मैं समझ गया की भाभी मेरे लुंड के दर्शन जी भर के करना चाहती है. मैं फिर कुर्सी पर उसी मुद्रा में बैठ गया. थोरी देर में भाभी छत पर आई और ऐसी जगह चटाई बिछाई जेहन से लुंगी की अंडर से पूरा लुंड साफ़ दिखाई दे.

हाथ में एक नोवेल था जिसे पढ़ने का बहाना करने लगी लेकिन नज़रें मेरे लुंड पर ही टिकी हुई थी. ८ इंच लुम्बा और ४ इंच मोटा लुंड और उसके पीचे उम्रूद के आकर के बाल्स लटकते देख उनका तो पसीना ही छूट गया. अनायास ही उनका हाथ अपनी चूत पर गया और वो उसे अपनी सलवार के ऊपर से रगारने लगी. जी भर के मैंने भाभी को अपने लुंड के दर्शन कराये.

जब मैं कुर्सी से उठा तो भाभी ने जल्दी से नोवेल अपने चेहरे के आगे कर लिया, जैसे वो नोवेल पढ़ने में बरी मग्न हो. मैंने कई दिन से बहभी की गुलाबी काछी नहीं देखि थी. आज भी वो नहीं सूख रही थी. मैंने भाभी से पुछा

" बहभी बहुत दिनों से अपने गुलाबी काछी नहीं पहनी?"

" तुझे क्या?"

" मुझे वो बहुत अछी लगाती है. उसे पहना करिये न."

" मैं कोन सा तेरे सामने पहनती हूँ?"

" बताइए न भाभी कहाँ गयी, कभी सूखती हुई भी नहीं नज़र आती."

" तेरे भैया ले गए. कहते थे की वो उन्हें मेरी याद दिलाएगी."
भाभी ने शर्माते हुए कहा.

" आपकी याद दिलाएगी या आपके टांगों के बीच में जो चीसे है उसकी?"

" हट मक्कार ! तुने भी तो मेरी एक कच्छी मार राखी है. उसे पहनता है क्या? पहनना नहीं, कहीं फट न जाये." भाभी मुझे चिढ़ाती हुई बोली.

" फटेगी क्यों? मेरे नितम्ब आपके जितने भरी और चौरे तो नहीं हैं".

" अरे बुधहु, नितम्ब तो बरे नहीं हैं, लेकिन सामने से तो फट सकती है. तुझे तो वो सामने से फिट भी नहीं होगी."

" फिट क्यों नहीं होगी भाभी?" मैंने अनजान बनते हुए कहा.


" अरे बाबा, मर्दों की टांगों के बीच में जो वो होता है न, वो उस छोटी सी कच्ची में कैसे समां सकता है, और वो तगरा भी तो होता है कच्छी के महीन कपरे को फार सकता है."

" वो क्या भाभी?" मैंने शरारत भरे अंदाज़ में पुछा. भाभी जान गयी की मैं उनके मुंह से क्या कहलवाना चाहता हूँ.

" मेरे मुंह से कहलवाने में मज़ा आता है?"

" एक तरफ तो आप कहती हैं की आप मुझे सुब कुछ बताएंगी,और फिर साफ़ साफ़ बात भी नहीं कराती. आप मुझसे और मैं आपसे शर्माता रहूँगा तो मुझे कभी कुछ नहीं पता लगेगा और मैं भी भैया की
तरह अनारी रह जाऊंगा. बताइये न !"

" तू और तेरे भैया दोनों एक से हैं.मेरे मुंह से सुब कुछ सुन कर तुझे ख़ुशी मिलेगी?"

" हाँ भाभी बहुत ख़ुशी मिलेगी. और फिर मैं कोई पराया हूँ."

" ऐसा मत बोल रामू. तेरी ख़ुशी के लिए मैं वाही करुँगी जो तू कहेगा."

" तो फिर साफ़ साफ़ बतिये आपका क्या मतलब था."

" मेरे बुद्धू देवर जी, मेरा मतलब ये था की मर्द का वो बहुत तगरा होता है, औरत की नाज़ुक कच्छी उसे कैसे झेल पाएगी ? और अगर वो खरा हो गया तउब तो फट ही जाएगी न."

" भाभी आपने वो वो लगा राह्की है, मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा."

" अच्छा अगर तू बता दे उसे क्या कहते हैं तो मैं भी बोल दूंगी." भाभी ने लजाते हुए कहा.

" भाभी मर्द के उसको लुंड कहते हैं."

" ह़ा…..!, मेरा भी मतलब येही था."

"क्या मतलब था आपका?"

" की तेरा लुंड मेरी कच्छी को फार देगा. अब तो तू खुश है न.?"

" हाँ भाभी बहुत खुश हूँ. अब यह भी बता दीजिये की आपकी टांगों के बीच में जो है उसे क्या कहते हैं"

"उसे? मुझे तो नहीं पता. ऐसी चीसें तो तुझे ही पता होती हैं. तू ही बता दे."

"भाभी उसे चूत कहते हैं."

"ह़ा! तुझे तो शर्म भी नहीं आती. वाही कहते होंगे."

" वाही क्या भाभी?"

" ओह हो बाबा, चूत और क्या." भाभी के मुंह से लुंड और चूत जैसे शब्द सुन कर मेरा लुंड फनफनाने लगा. अब तो मेरी हिम्मत और बढ़ गयी. मैंने भाभी से कहा.

" भाभी इसी चूत की तो दुनिया इतनी दीवानी है."

" अच्छा जी तो देवेरजी भी इसके दीवाने हैं."

" हाँ मेरी प्यारी भाभी किसी की भी चूत का नहीं सिर्फ आपकी चूत का दीवाना हूँ."

"तुझे तो बिलकुल भी शर्म नहीं है. मैं तेरी भाभी हूँ." भाभी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोली.
अगर मैं आपको एक बात बताऊँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी?"

" नहीं रामू. देवर भाभी के बीच तो कोई झिझक नहीं होनी चाहिए. और अब तो तुने मेरे मुंह से सुब कुछ कहलवा दिया है.लेकिन मेरी कच्छी तो वापस कर दे."


" सच कहूँ भाभी, रोज़ रात को उसे सूंघता हूँ तो आपकी चूत की महक मुझे मदहोश कर डालती है. जब मैं अपना लुंड आपकी कच्ची से रागरता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे लुंड आपकी चूत से रगर रहा हो "

" ओह ! अब समझी देवरजी मेरी कच्छी के पीछे क्यों पागल हैं. इसीलिए तो कहती हूँ तुझे एक सुंदर सी बीवी की ज़रुरत है"

" लेकिन मैं तो अनारी हूँ. आपने तो प्रोमिस कर के भी कुछ नहीं बताया. उस दिन आप कह रही थी की मर्द अनारी हो तो लड़की को सुहाग रात में बहुत तकलीफ होती है. आपका क्या मतलब था? आपको भी तकलीफ हुई थी?"

" हाँ रामू, तेरे भैया अनारी थे. सुहागरात को मेरी साडी उठा कर बिना मुझे गरम किये चोदना शुरू कर दिया. अपने ८ इंच लूम्बे और ३इन्च मोटे लुंड से मेरी कुंवारी चूत को बहुत ही बेरहमी से चोदा. बहुत खून निकला मेरी चूत से. अगले एक महीने तक दर्द होता रहा." मेरा लुंड देखने के बाद से भाभी काफी उत्तेजित हो गयी थी और बिलकुल
ही शर्माना छोर दिया था.

" लड़की को गरम कैसे करते हैं भाभी?"

" पहले प्यार से उससे बातें करते हैं. फिर धीरे धेरे उस के कपरे उतारते हैं. उसके बदन को सहलाते हैं. उसकी होटों को और चुचिओं को चुमते हैं. फिर प्यार से उसकी चुचिओं और चूत को मसलते हैं. फिर हलके से एक ऊँगली उसकी चूत में सरका कर देखते हैं की लड़की की चूत पूरी तरह गीली है. अगर चूत गीली है, इसका मतलब
लड़की चुदने के लिए तयार है.इसके बाद प्यार से उसकी टाँगें उठा कर धीरे धेरे लुंड अंडर दाल देते हैं. पहली रात जोर जोर से धक्के नहीं मारते."

" भाभी उस फिल्म में तो वो कालू उस लड़की की चूत चाटता है, लड़की भी लुंड चूसती है. कालू उस लड़की को कई तरह से चोदता है. एहन तक की उसकी गांड भी मारता है"

" अरे बुद्धू ये सुब पहली रात को नहीं किया जाता, धीरे धीरे किया जाता है."

" बहभी, भैया भी वो sub आपके साथ करते हैं?"

" नहीं रे ! तेरे भैया अनारी थे और अब भी अनारी हैं. उनको तो सिर्फ टांगें उठा कर पेलना आता है. अक्सर तो पूरी तरह नंगी किये बिना ही छोड़ते हैं. औरत को मज़ा तो पूरी तरह नंगी हो कर ही चुदवाने में आता है."

" भाभी आपको नंगी हो कर चुदवाने में बहुत मज़ा आता है?"

" क्यों में औरत नहीं हूँ ? अगर मोटा तगरा लुंड हो और चोदने वाला नंगी करके प्यार से चोदे तो बहुत ही मज़ा आता है."

" लेकिन भैया का लुंड तो मोटा तगरा होगा. हाँ मेरे लुंड की बराबरी नहीं कर सकता है"

" तुझे कैसे पता ? "

" मुझे तो नहीं पता लेकिन आप तो बता सकती हैं"

" में कैसे बता सकती हूँ? मैंने तेरा लुंड तो नहीं देखा है" भाभी ने बनते हुए कहा. में मन ही मन मुस्कुराया और बोला,

" तो क्या हुआ भाभी. कहो तो अभी आपको अपने लुंड के दर्शन करा देता हूँ, आप नाप लो किसका बार है."

" हट बदमाश!"

" अगर आप नहीं दर्शन करना चाहती तो कम से कम मुझे तो अपनी चूत के दर्शन एक बार करवा दीजिये. सुच भाभी मैंने आज तक किसी की चूत नहीं देखी."



" चल नालायक! तेरी शादी जल्दी करवा दें? इतना उतावला क्यों हो रहा है?"

" उतावला क्यों न हूँ? मेरी प्यारी भाभी को भैया सारी सारी रात खूब जम कर चोदें और मेरी किस्मत में उनकी चूत के दर्शन तक न हों. इतनी खूबसूरत भाभी की चूत तो और भी लाजबाब होगी. एक बार दिखा दोगी तो घिस तो नहीं जोगी. अच्छा, इतना तो बता दो की आपकी चूत भी उतनी ही चिकनी है जितनी फिल्म में उस लड़की की थी?"

" नहीं रे, जैसे मर्दों के लुंड के चरों तरफ बाल होते हैं वैसे ही औरतों की चूत पर भी बाल होते हैं. उस लड़की ने तो अपने बाल शवे कर रखे थे."

" भाभी तुब तो जितने घने और सुंदर बाल अप्प्के सर पर हैं उतने ही घने बाल आपकी चूत पर भी होंगे? आप अपनी चूत के बाल शवे नहीं करतीं?"

" तेरे भैया को मेरी झांटें बहुत पसंद हैं इसलिए शवे नहीं करती."

" है भाभी आपकी चूत की एक झलक पाने के लिए कउब से पागल हो रहा हूँ, और कितना तर्पोगी ?"

" सबर कर, सबर कर ! सबर का फल हमेशा मीठा होता है." यह कहा कर बरे ही कातिलाना अंदाज़ में मुस्कुराती हुई नीचे चली गयी. मेरे लुंड के दुबारा दर्शन करने के बाद से तो भाभी का काफी बुरा
हाल था. एक दिन मैंने उनके कमरे में मोटा सा खीर देखा. मैंने उसे सूंघ कर देखा तो खीरे में से भी वैसी ही महक आ रही थी जैसी भाभी की कच्छी में से आती थी. लगता था भाभी खीरे से ही लुंड की भूख मिटने की कोशिश कर रही थी. मुझे मालूम था की गन्दी पिक्चर भी वो कई बार देख चुकी थी. भैया को जा कर तीन महीने बीत गए. घर में मोटा ताज़ा लुंड मौजूद होने के बावजूद भी भाभी लुंड की प्यास में तरप रही थी.

मैंने एक और प्लान बनाया. बाज़ार से एक हिंदी का बहुत ही गन्दा नोवेल लाया जिसमे देवर भबाही की चुदाई के किस्से थे. उस नोवेल में भाभी अपने देवर को रिझाती है. वो जान कर कपरे धोने इस प्रकार बैठती है की उसके पेत्तिकोअत के नीचे से देवर को उसकी चूत के दर्शन हो जाते हैं. ये नोवेल मैंने ऐसी जगह रखा जहाँ भाभी के हाथ लग
जाये. एक दिन जब मैं कॉलेज से वापस आया तो मैंने पाया की वो नोवेल अपनी जगह पर नहीं था. मैं जान गया की भाभी वो नोवेल पढ़ चुकी है. अगले इतवर को मैंने देखा की भाभी कपरे बाथरूम में धोने के
बजे वरन्दाह के नलके पर ड्धो रही थी. उसने सिर्फ ब्लौसे और पेत्तिकोअत पहन रखा था. मुझे देख कर बोली,

" आ रामू बैठ. तेरे कोई कपरे धोने हैं तो देदे." मैंने कहा मेरे कोई कपरे नहीं धोने हैं और मैं भाभी के सामने बैठ गया.
भाभी इधेर उधेर की गप्पें मरती रही . अचानक भाभी के पेत्तिकोअत का पिछला हिस्सा नीचे गिर गया. सामने का नज़ारा देख कर तो मेरे दिल की धरकन बढ़ गयी. भाभी गोरी गोरी मांसल झानगों के बीच में से......
सफ़ेद रंग की कच्छी झांक रही थी. भाभी जिस अंदाज़ में बैठी हुई थी उसके कारण कच्छी भाभी की चुत पर बुरी तरह कासी हुई थी. फूली हुई चूत का उभर मनो कच्छी को फार कर आजाद होने की कोशिश कर रहा हो. कच्छी चुत के कटाव में धंसी हुई थी.

कच्छी के दोनों तरफ से काली काली झांटें बहार निकली हुई थी. मेरे लुंड ने हरकत करनी शुरू कर दी. भाभी मनो बेखबर हो कर कपरे धोती जा रही थी और मुझसे गप्पें मार रही थी. अभी मैं भाभी की टांगों के बीच के नज़ारे का मज़ा ले ही रहा था की वो अचानक उठ कर अंडर जाने लगी.

मैंने उदास हो कर पुछा " भाभी कहाँ जा रही हो ?" " एक मिनट में आई." थोरी देर में वो बहार आई. उनके हाथ में
वोही सफ़ेद कच्छी थी जो उन्होंने अभी अभी पहनी हुई थी. भाभी फिर से वैसे ही बैठ कर अपनी कच्छी धोने लगी. लेकिन बैठते समय उन्होंने पेत्तिकोअत ठीक से टांगों के बीच दबा लिया. यह सोच के की पेत्तिकोअत के नीचे अब भाभी की चुत बिलकुल नंगी होगी मेरा मन डोलने लगा. मैं मन ही मन दुआ करने लगा की भाभी का पेत्तिकोअत फिर
से नीचे गिर जाए. शायद ऊपर वाले ने मेरी दुआ जल्दी ही सुन ली. भाभी का पेत्तिकोअत का पिछला हिस्सा फिर से नीचे गिर गया. अब तो मेरे हो ही उरः गए. उनकी गोरी गोरी मांसल टाँगें साफ़ नज़र आने लगी. तभी भाभी ने अपनी टांगों को फैला दिया और अब तो मेरा कलेजा ही मुंह को आ गया. भाभी की चुत बिलकुल नंगी थी. गोरी गोरी सुदोल
जांघों के बीच में उनकी चुत साफ़ नज़र आ रही थी. पूरी चुतघने काले बालों से ढकी हुई थी, लेकिन चुत की दोनों फांकें और बीच का कटाव घनी झांटों के पीछे से नज़र आ रहा था. चुत इतनी फूली हुई थी और उसका मुंह इस प्रकार से खुला हुआ था, मनो अभी अभी किसी मोटे लुंड से चुदी हो. भाभी कपरे धोने में ऐसे लगी हुई थी मनो उसे कुछ पता न हो. मेरे चेहरे की और देख कर बोली

" क्या बात है रामू, तेरा चेहरा तो ऐसे लग रहा है जैसे तुने सांप देख लिया हो?" मैं बोला

" भाभी सांप तो नहीं लेकिन सांप जिस बिल बिन रहता है उसे
ज़रूर देख लिया."

" क्या मतलब ? कौन से बिल की बात कर रहा है?" मेरी आँखें
भाभी की चुत पर ही जमी हुई थी.

" भबाही आपकी टांगों के बीच में जो सांप का बिल है न मैं उसी
की बात कर रहा हूँ."

" हा..आया !!! बदमाश !! इतनी देर से तू यह देख रहा था ? तुझे शर्म नहीं आई अपनी भबाही की टांगों के बीच में झांकते हुए?' यह कह कर भबाही ने झट से टाँगें नीचे कर लीं.

" आपकी कसम भ्बाही इतनी लाजबाब चुत तो मैंने किसी फिल्म में भी नहीं देखी. भैया कितनी किस्मत वाले हैं. लेकिन भाभी इस बिल को तो एक लूम्बे मोटे सांप की ज़रुरत है."

भाभी मुस्कुराते हुए बोली,

" कहाँ से लाऊं उस लुम्बे मोटे सांप को.?"

" मेरे पास है न एक लुम्बा मोटा सांप. एक इशारा करो, सदा ही आपके बिल में रहेगा."

" हट नालायक." यह कहा कर भाभी कपरे सुखाने चाट पे चली गयी..

ज़ाहिर था की ये करने का विचार भाभी के मन में नोवेल पढ़ने के बाद ही आया था. अब तो मुझे पूरा विश्वास हो गया की भाभी मुझसे

चुदवाना चाहती है. मैं मोके की तलाश में था जो जल्दी ही हाथ Aa gaya.

तीन दिन बाद कॉलेज में बॉडी बिल्डिंग कोम्पेतितिओन था. मैंने खूब कसरत और मालिश करनी शुरू कर दी थी. भाभी भी मुझे अछी खुराक खिला रही थी. एक दिन भाभी नहा रही थी और मैं अपने कमरे में मालिश कर रहा था. मैंने सिर्फ उन्देर्वेअर पहन रखा था. इतने में भाभी नहा कर कमरे में आ गयी. वो पेत्तिकोअत और ब्लौसे में थी. मैंने भाभी से कहा" भाभी ज़रा पीठ की मालिश कर दोगी?" भाभी बोली " हाँ हाँ क्यों नहीं चल लेत जा" मैं चटाई पर पित के बल लेत गया. भाभी ने हाथ में तेल ले कर मेरी पीठ पर लगाना शुरू कर दिया. भाभी के मुलायम हाथों का स्पर्श बहुत
अच्छा लग रहा था.